मेरी सेक्सी बिंदास भाभी ने मेरे लंड की सील तोड़ी-8
सुबह के करीब 10 बजे थे, लेकिन भाभी की चुदाई के बाद मुझे नींद सी आ रही थी, मैं एक बार फिर से सो गया।
सुबह के करीब 10 बजे थे, लेकिन भाभी की चुदाई के बाद मुझे नींद सी आ रही थी, मैं एक बार फिर से सो गया।
प्रेषक : आर्यन
उस दिन दोपहर को हम तीनों ने अपने चाचाजी की हवेली के पीछे बने हुये बड़े से खलिहान में जा कर मज़े करने की सोची। खलिहान में बड़े बड़े कमरे थे, जिनमें भूसा भरा था, गोबर के उपले रखे थे, खेती बाड़ी के औज़ार रखे थे, और भी बहुत कुछ समान रखा था।
इमरान सलोनी ने दरवाजा खोला- ओह आप आ तो गए… क्या हुआ प्रणव भैया ??? उसने सलोनी को देख एकदम से गले लगाया और उसके गाल को चूमा… प्रणव हमेशा ऐसे ही मिलता था… विदेशी कल्चर… और उसकी पत्नी रुचिका भी… उसने नजर भरकर सलोनी को देखा… प्रणव- वाह सलोनी… आज तो मस्त सेक्सी लग रही हो… सलोनी- अरे रुचिका कहाँ है भैया… प्रणव- अरे क्या कहूँ हम दोनों यहीं आ रहे थे… कि रुचिका के मॉम-डैड का फ़ोन आ गया… वो कहीं जा रहे थे… मगर कुछ इमर्जेन्सी हो गई… तो अभी आधे घंटे बाद उनका प्लेन यहीं आ रहा है… हम दोनों उनको ही लेने जा रहे हैं… सॉरी यार फिर कभी जरूर आएंगे… मैं- अरे यार एकदम… ये सब कैसे? प्रणव- यार फिर बताऊंगा… मुझे तो इस पार्टी को मिस करने का बहुत दुःख है… अच्छा यार ज़रा जल्दी में हूँ… माफ़ कर दो… तुम दोनों मुझको… उसने एक बार फिर सलोनी को अपने गले लगाया… इस बार मैं पीछे ही था, मैंने साफ़ देखा उसके बायाँ हाथ सलोनी के चूतड़ों पर था… फिर वो तेजी से बाहर को निकल गया… मैं भी जल्दी से बाहर को आया… उसको सी ऑफ करने के लिए… मैं उसके साथ ही नीचे आ गया… रुचिका को भी एक नजर देखने के लिए… रुचिका उसकी महंगी कार में ही बैठी थी… मैं उसकी ओर गया… उसने तुरंत दरवाजा खोला… रुचिका ने पिंक मिनी स्कर्ट और टॉप पहना था… जैसे ही वो नीचे उतरने लगी… उसके बायाँ पैर जमीन पर रखते ही… उसकी स्कर्ट ऊपर हो गई… और दोनों पैर के बीच बहुत ज्यादा गैप हो गया… मुझे उसकी नेट वाली लाल कच्छी दिखी… मेरी नजर वहीं थी कि… रुचिका- ओह अंकुर एक मिनट… मैं सॉरी बोल पीछे हटा… रुचिका ने बाहर आ मेरे सीने से लग गाल को हल्का सा चुम्बन किया… मुझे प्रणव की हरकत याद आ गई… मैंने भी अपना बायाँ हाथ रुचिका के चूतड़ों पर रखा… ओह गॉड मेरी किस्मत… मेरी उँगलियों को पूरी तरह से नंगे, मक्खन जैसे चूतड़ों का स्पर्श मिला… बैठने से रुचिका की स्कर्ट पीछे से सिमट कर ऊपर हो गई थी… और उसने शायद लाल टोंग पहना था… जिससे उसके चूतड़ के दोनों उभार नंगे थे… मेरी उँगलियाँ खुद ब खुद उसके चूतड़ों के मुलायम गोश्त में गड़ गई… मैंने भी रुचिका के गाल पर चुम्मा लिया… और जब गाड़ी में देखा तो प्रणव ड्राइविंग सीट पर बैठ गया था… और वो मेरे हाथ को देख कर मुस्कुरा रहा था… मैंने जल्दी से रुचिका को छोड़ा और पीछे हट गया… रुचिका- सॉरी प्रणव… फिर बनाएँगे यार प्रोग्राम… अब तुम दोनों आना हमारे घर… मैं- कोई बात नहीं… ये सब भी देखना ही था… ठीक है… रुचिका घूमकर गाड़ी में बैठने लगी… उसने अभी भी अपनी स्कर्ट ठीक नहीं की थी… उसके चूतड़ों की एक झलक मुझे मिल गई… ना जाने मुझमे कहाँ से हिम्मत आ गई… मैंने रुचिका को रोका और उसकी स्कर्ट सही कर दी… रुचिका- क्या हुआ अंकुर।?? मैं- अरे या… स्कर्ट ऊपर हो गई थी… रुचिका- ओह… थैंक्स… प्रणव- हा हा हा… रुचिका आज… सलोनी तुमसे कहीं ज्यादा सेक्सी लग रही थी… रुचिका चिढ़कर- …तो नीचे क्यों आ गए… वहीं रुक जाते ना… मैं अंकुर के साथ चली जाती हूँ… प्रणव- ओह यार… मैं तो तैयार हूँ… क्यों अंकुर…?? मैं- हाँ हाँ… ठीक है… सोच ले… मुझे भी उनके सामने कुछ बोल्ड होना पड़ा… प्रणव ने गाड़ी स्टार्ट की- ..चल अच्छा फिर कभी सोचेंगे… वरना इसके पापा सोचेंगे… कि यार मेरी बेटी का पति कैसे बदल गया… और मैं उन दोनों को विदा कर ऊपर आ गया… दरवाजा खुला था… मैं अंदर गया… मधु हमारे बैडरूम के दरवाजे पर खड़े हो चुपचाप अन्दर झाँक रही थी… मैं चुपके से वहाँ गया, मुझे देखते ही वो डरकर पीछे हो गई… मैंने भी अंदर देखा… एक और सरप्राइज तैयार था… अंदर अरविन्द अंकल और सलोनी थे… मैं थोड़ा आश्चर्यचकित हो जाता हूँ… कहानी जारी रहेगी।
प्रेषक : रवि
लेखक : नितेश शुक्ला
दोस्तो, मेरी पिछली वाइफ स्वैपिंग कहानी
जिम मौरीसन
दो कदम तो सब चल लेते हैं,
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करीब एक महीने बाद की बात है। मैं सुबह ऑफिस पहुँचा तो देखा कि ऑडिट डिपार्टमेंट में एक नयी लड़की काम कर रही है। वाओ! कितनी सुंदर थी वो। वो करीब ५ फ़ुट ४ इंच की थी पर इस समय हाइ-हील की सैंडल पहने होने की वजह से ५ फ़ुट आठ इंच के करीब लग रही थी। गाल भरे-भरे और आँखें भी तीखी थी। उसने टाइट स्लीवलेस टॉप और टाइट जींस पहन रखी थी। कपड़े टाइट होने की वजह से उसके बदन का एक-एक अंग जैसे छलक रहा था। उसे देखते ही मेरे लंड में गर्मी आ गयी।
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सम्पादक जूजा
सम्भोग-सुख को दुनिया के महानतम सुखों में भी सर्वोत्तम सुख की संज्ञा से परिभाषित किया गया है, हर जाति, हर क़ौम और हर विकाशशील व विकसित देश के सर्वोच्च बुद्धिजीवियों द्वारा नवाज़ा और अनुमोदित किया गया है। मानव जीवन की यह एक विशालतम वास्तविकता है, क्यूँकि किसी भी यौन-अतृप्त स्त्री या पुरुष के द्वारा मानव-कल्याण का कोई भी महत्वपूर्ण कार्य यथोचित रूप से सम्पन्न नहीं किया जा सकता।
सुबह की स्वच्छ ताजी हवा में गुलाब के ताजा फूलों की खुशबू फैल रही थी। शहर के कोलाहल से दूर प्रदूषणमुक्त शांत वातावरण में फूलों की सुगंधभरी ताजी हवा में घूमते हुए मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था। हर तरफ गुलाब फैले थे भाँति भाँति के- लाल, गुलाबी, काले, बैंगनी, उजले… !
प्रेषक : निखिल
मैंने कानपुर से अपनी इंजीनिरिंग की पढ़ाई की है। मेरे कॉलेज में प्रतिवर्ष वार्षिक उत्सव मनाया जाता है।
नमस्कार दोस्तो.. अभी तक आपको कुछ बहुत अच्छी और कुछ सामान्य से भागों को पढ़ने का मौका मिला, आप सबकी समीक्षा और प्रोत्साहन संदेश मुझ तक निरंतर आते रहे। आप सबका हृदय से आभार!
आप सभी ने मेरी कहानी
यह कहानी स्त्री पुरुष औरत मर्द के नाजायज सम्बन्धों पर आधारित है। इसमें थोड़ी सीख भी है.. खास कर उन पुरुषों और औरतों के लिए, जो कभी कभार बहकने की सीमा पर पहुँच जाते हैं और कोई गलत कदम भी उठा लेते हैं, या जो बहक गए हैं, उनका भविष्य कैसा होगा.. इसका वर्णन है।
अब तक आपने पढ़ा..
फोन लेकर कम्मो बहुत खुश नजर आ रही थी. हम रेस्तरां के केबिन में बैठे थे.
प्रेषिका : स्लिमसीमा (सीमा भारद्वाज)
नमस्ते दोस्तो, मैं आप सबका दोस्त अभिषेक गुप्ता, आपकी सेवा में हाजिर हूँ. आज मैं एक सच्ची घटना बताने जा रहा हूँ.